गुरुवार, 29 मार्च 2018

मौन..

सुनों..!

एक "मौन" सी कहानी है

कुछ खामोशियाँ हैं मेरे जेहन में

जो चीखती हैं

बिन आवाज के..।

देखो!

आज कागज पे रख ही दिया मैंने

अपने अंदर के उस "मौन" को

के कहीं गुम न जाये

इसीलिए

शब्दों में पिरो के..।

पढ़ो!

आज तुम इस "मौन" को

के शायद ये शब्द भी छू लें

तुम्हारे दिल के तारों को..।

फिर देखना..

मेरी खामोशियों की

मूक ज़ुबाँ

कागजों पे बिखरे

शब्दों के मोती से

कैसे एक नया राग

तुम्हारे दिल के तारों से

निकलेगा संगीत बन के..

और फिर

खो जाओगे तुम

मेरे उसी "मौन" में

जो तुम्हें कल तक

पसंद भी न था माही..!


- महेश बारमाटे "माही"

29/03/18

शुक्रवार, 16 मार्च 2018

क्यों तुम्हें हमेशा...


हर पल तेरा चेहरा

मेरे जेहन के समंदर में उतराता रहता है..

और तेरा ख्याल

जैसे हो कोई चाँद

डूब के मुझमें

गोते खाता रहता है..

तुम लाख चाहो के मुझे भुला दो

पर ये जो इश्क़ है न मेरा

तेरे दिल की बगिया में गुल

खिलाता रहता है।

यकीन न हो

तो तुम ही बता दो

क्यों तुम्हे भी हर हमेशा

मेरा ही ख्याल

आता रहता है..?

कहो..?

क्यों तुम्हें हमेशा...


- महेश बारमाटे "माही"


शुक्रवार, 9 मार्च 2018

अंतहीन सी डोर



एक अंतहीन सी डोर है
क्या अदृश्य कोई छोर है..?
थामे हुए है मुझे और तुम्हें
मिलन की आस है
कैसी ये होड़ है..?

दूर हो के भी पास हैं
हमें एक दूजे का एहसास हैं
हरदम मिलन की आस है
कैसी ये प्यास है..?

चाहत और हकीक़त
में छोटा सा फर्क है
गर समझ गए तो जन्नत
वरना गर्द है।

जीवन की कश्ती मेरी
डूबे है अब हस्ती मेरी
न सोच के ये खेल है मुहब्बतों का
ये मुतालबा है हक़ का।

चाहूँ तुझे के पूरा कर
हर एक खाब तू अपनों का
मेरी चाहत का कोई मोल नहीं
पर सौदा न कर उनके सपनों का।

लिक्खा है तेरा मेरा मिलना आसमानों में
बस इंतज़ार ओ सब्र कर अरमानों में
मेरी ज़िन्दगी का भरोसा नहीं माही!
पर विश्वास है मुझे तेरे विश्वासों में।

महेश "माही"
8/3/18
10:33 am

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